💐💐युग-धर्म💐💐
पहाड़ की तराई में एक गांव है कीरतपुर। उस गांव में एक बुढ़िया रहती थी। उसका एक बेटा था। जिसका विवाह उसने थोड़ी दूर बसे दूसरे गांव धर्मपुर में कर दिया था। एक दिन बुढ़िया ने अपने बेटे रघुवीर से कहा, “बेटे, अब मुझसे घर का कामकाज नहीं होता। तू जाकर बहू को लिवा ला। मुझे बुढ़ापे का सहारा मिल जाएगा।” रघुवीर मां की बात सुन अपनी बहू को लिवाने ससुराल के लिए चल पड़ा। उसकी ससुराल के बीच एक घना जंगल पड़ता था। जब वह जंगल के बीच से जा रहा था तो उसने देखा कि रास्ते के किनारे पेड़ के गिरे पत्तों-फूलों आदि में आग लगी हुई है और पास ही पत्तों की जलती आग के बीच एक बिल है जिसमें से सांप बार-बार अपना सिर निकाल रहा है, पर आग की गरमी से निकल नहीं पा रहा था। बुढिया के बेटे को आते देख सांप जोर से चिल्लाकर बोला, “ऐ भाई! मझे इस आग से बाहर निकालो, तुम्हारा बड़ा एहसान मानूंगा।” रघुवीर ने कहा. “तुम तो सांप हो। तुम्हारा क्या भरोसा, तुम निकलने के बाद मुझे काट सकते हो।”
सांप ने कहा, “कैसी बातें करते हो, तुम मेरी जान बचाओगे और मैं तुम्हें काट लूंगा? ऐसी बात सोची भी नहीं जा सकती।” सांप के बार-बार अनुनय करने पर लड़के को दया आ गई और उसने लाठी की मदद से सांप को आग से निकाल दिया। सांप जैसे ही आग से बाहर हुआ, उसने लड़के से कहा, “अब मैं तुम्हें काटूंगा।”
रघुवीर हक्का-बक्का रह गया, थरथराते हुए उसने कहा, “लेकिन तुमने तो न काटने का पक्का वायदा किया था।” सांप ने हंसते हुए कहा, “अरे मूर्ख! यह कलियुग है। कहने और करने में जमीन आसमान का अंतर है। यहां भलाई का बदला बुराई से है। यहां युग धर्म है। मैं तुम्हें काट कर युग-धर्म जरूर निबाहूंगा।” लड़के ने कहा, “यदि तुम्हें काटना ही है तो काट लो, पर मेरी तसल्ली तो करवा दो कि कलियुग का यही धर्म है।”
सांप ने लड़के की बात मान ली। लड़का सांप के साथ जंगल चरती हुई एक गाय के पास गया और गाय को पूरी घटना सुनाकर बोला, “गाय माता ! अब तुम्हीं न्याय करो!” गाय बोली, “सांप ठीक कह रहा है। मुझे ही देखो, घास खाकर दूध देती हूं। खेती के लिए बछड़े बैल देती हूं लेकिन मेरे बूढ़े होने पर यह आदमी मुझे कसाई के हवाले कर देता है। यही इस युग का न्याय है।” सांप ने कहा, “अब तो तेरी तसल्ली हो गई?” लड़का गिड़गिड़ाया, “किसी एक से और बात कर लेने दो। अगर उसने भी यही कहा तो मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं।” लड़के ने सामने एक पेड़ को अपनी सारी कहानी दुहराई तो पेड़ ने कहा, “सांप ठीक कह रहा है। मैं आदमी को शीतल छाया और मीठे फल देता हूं, पर बदले में आदमी मुझे काटता है, आग में जलाता है। कलियुग का यही धर्म है।” यह सुनकर लड़के ने सांप से कहा, “मैं तुम्हारे काटने का विरोध नहीं करूंगा। लेकिन मेरी एक अंतिम इच्छा है, जब से मेरा विवाह हुआ है मैंने अपनी पत्नी का मुंह ठीक से नहीं देखा है। तुम मुझे एक मौका दे दो। मैं अपनी पत्नी को देखकर वापस आ जाऊंगा तब तुम मुझे काट लेना।” सांप ने कहा, “मंजूर है, पर पत्नी से कोई बात न करना और 3 घण्टे के भीतर लौट आना।” लड़का अपनी ससुराल पहुंचा। कुछ कदम दूर से ही उसने देखा, उसकी पत्नी दरवाजा साफ कर रही है। उसे देखकर उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे। उसकी पत्नी उसे इस तरह देख अवाक रह गई। वह कुछ पूछ पाती इसके पहले ही लड़का वापस चल दिया। पत्नी ने सोचा जरूर कोई विपत्ति आई है। वह भी पीछे-पीछे चलकर सांप तक पहुंच गई।
सांप ने फुफकारते हुए कहा, “मैंने तो तुम्हें पत्नी से बात करने से मना किया था। इसको लेकर क्यों आए हो?” इस पर उसकी पत्नी ने कहा, “इन्होंने मुझसे बात नहीं की। ये बिना कुछ बोले वापस चल दिए तो मैं इनके पीछे-पीछे चली आई हूं।” लड़के ने कहा, “अब मैं तैयार हूं। युग धर्म का निर्वाह करो।” सांप लड़के को काटने को तैयार हुआ तभी उसकी पत्नी ने कहा, “थोड़ा रुक जाओ, तुम इन्हें काटने जा रहे हो। सिर्फ इतना बता दो, इनके बाद मैं अपना गुजारा कैसे करूंगी!” सांप ने कहा, “उसका इंतजाम है। इस बिल के सात फेरे करके इसे खोदोगी तो तुम्हें सोने से भरे हुए सात घड़े मिलेंगे, तुम्हारी जिंदगी आराम से गुजर जाएगी।” लड़के की पत्नी ने कहा, “मैं तुम्हारी बात पर कैसे विश्वास करूं। मेरी तसल्ली के लिए सात फेरे कर बिल खोद लेने दीजिए।” सांप लड़की की बात मान गया। लड़के की पत्नी बिल के फेरे लेने लगी। सातवां फेरा पूरा होते-होते उसने अपने पति के हाथ से लाठी छीनकर उसे सांप के सिर पर जोर से दे मारी।
सांप छटपटाने लगा। वह लड़की से बोला, “तू तो बड़ी धोखेबाज निकली।”
तब उसकी पत्नी ने कहा, “क्षमा करना नाग देवता। मैं तो आप ही की बात रख रही हूं। आपने कहा कि यहां भलाई का बदला बुराई है। हमें आपने इतना बड़ा खजाना बताया लेकिन हमें भी तो कलियुग का धर्म निबाहना पड़ा और आपके प्राण लेने पड़े।” सांप का निर्जीव शरीर एक ओर धराशायी हो गया। लड़का और उसकी पत्नी खजाना लेकर अपने गांव खुशी-खुशी लौट आए।
*संकलनकर्ता- बाली पहलवान*
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
Inayat
10-Apr-2022 03:43 PM
Achchi kahani h
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Punam verma
09-Apr-2022 08:20 AM
Nice
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Gunjan Kamal
09-Apr-2022 02:02 AM
शानदार प्रस्तुति 👌👌
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